दिल्ली के तीन डाॅक्टरों ने ऐसा कमाल किया है कि पूरी दुनिया के चिकित्सक दांतों तले अंगुली दबा रहे हैं क्योंकि उन्होंने सुपर स्पेशिलियटी से लेकर एमबीबीएस डिग्री धारी डाॅक्टरों को अस्पताल के प्रशासनिक पदों पर नियुक्ति प्रक्रिया से बाहर कर दिया है. मजे की बात ये कि तीनों डाॅक्टरों की इस कारस्तानी को अस्पताल प्रशासन ने भी सिर झुका कर मंजूर कर लिया है और इसी के साथ तीनों डाॅक्टर मलाईदार पोस्ट पर हमेशा के लिए काबिज हो गए हैं.
ऐसे हुआ गड़बड़ का खुलासा
तीनों चिकित्सकों की इस कारस्तानी का खुलासा तब हुआ जब 2020 में प्रशासन के विभिन्न पदों नियुक्ति के लिए प्रकाशित विज्ञापन में नियुक्ति योग्यता में फर्जी बदलाव करके 6 जनवरी 2024 को नया विज्ञापन प्रकाशित करवाकर डिग्रीधारी चिकित्सकों को इस क्लाॅज के साथ आवेदन के अयोग्य कर दिया कि इन पदों पर नियुक्ति के लिए एमएचए यानी पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन हास्पीटेलिटी अनिवार्य है. जबकि पूरी दुनिया में इस तरह का नियम नहीं है क्योंकि अस्पतालों में प्रशासनिक कामकाज के लिए एमबीबीएस से लेकर सुपर स्पेशियलिटी डिग्रीधारी डाॅक्टर ही नियुक्त किए जाते हैं.
नियुक्ति के लिए नियम केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय के बनाए हुए हैं और उनमें बदलाव की एक लम्बी प्रकिया है लेकिन दिल्ली के राजीवगांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के डाॅक्टरों ने अंडर द टेबल युक्ति से नियुक्ति के नियमों में एमएचए डिप्लोमा अनिवार्य का क्लाॅज डलवाकर जिन पदों पर वे काम कर रहे हैं उन्हें हमेशा के लिए अपने नाम कर लिया है.
इन्हें फायदा पहुंचाने के लिए रद्द किया गया विज्ञापन
असल में दिल्ली का राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल सोसायटी हास्पीटल है. दिल्ली में ऐसे कई अस्पताल दिल्ली सरकार ने खोले हुए हैं और उनको आटोनाॅमस दर्जा देकर तमाम प्रशासनिक अधिकार उनके निदेशकों को दे रखे हैं. इसी का फायदा उठाकर अस्पताल के कार्यवाहक चिकित्सा अधिकारी डा. आकाश दीप, उपनिदेशक प्रशासन डा. मोना बरगोटिया, कार्यवाहक परचेज अधिकारी डा. पीयूष वर्मा ने नियुक्ति विज्ञापन में एमएचए का क्लाॅज जुडवाकर नया विज्ञापन प्रकािशित करवा दिया. जबकि 2020 में छपे विज्ञापन में ये क्लाॅज नहीं था और सभी डिग्रीधारी डाॅक्टर इन पदों पर नियुक्ति के पात्र थे.
केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय बनाता है भर्ती नियम और प्रक्रिया
तीनों डाॅक्टरों के अलावा ब्लड बैंक इंचार्ज डा. छवि गुप्ता को भी इस रैकेट में शामिल बताया गया है. जबकि पात्रता मानदंड अर्थात शैक्षिक योग्यता, भर्ती की प्रकिया और उसके नियम केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय तय करता है और समूचे देश में वे लागू होते हैं. उन नियमों में किसी खास संस्थान की बात तो दूर राज्य सरकारें भी किसी तरह का बदलाव नहीं कर सकतीं. अगर कोई राज्य सरकार किसी नियम अथवा प्रक्रिया में बदलाव की इच्छा रखती हैं तो उन्हें उसक प्रस्ताव कार्मिक मंत्रालय को ही भेजना होगा. जहां तक यूपीएससी का सवाल है तो वह अखिल भारतीय सेवाओं के साथ ही खास तरह के पदों पर नियुक्ति में भी कार्मिक मंत्रालय के नियम कायदों की पालना ही करता है. यहां तक कि राज्यों में नियुक्ति के लिए भी कार्मिक मंत्रालय के बनाए नियम तथा प्रकियाओं की पालना की जाती है.
कई वर्षों से नहीं हैं नियमित चिकित्सा अधीक्षक
सबसे बड़ा चोंकाने वाला तथ्य ये है कि दिल्ली का राजीव गांधी सुपर स्पेशियटिी अस्पताल कई साल से नियमित चिकित्सा अधीक्षक, उप चिकित्सा अधीक्षक, उप निदेशक एवं प्रशासनिक अधिकारी, सतर्कता अधिकारी के बिना चल रहा है. इसके बावजूद 2020 में 7 मई को प्रकाशित उस विज्ञापन को चिकित्सा अधीक्षक ने न सिर्फ रद्द कर दिया बल्कि 2020 में 84 पदों पर भर्ती निकाला गया विज्ञापन रद्द करके 6 जनवरी को प्रकाशित विज्ञापन में पदों की संख्या घटाकर 49 कर दी गई. जबकि अस्पताल पर रोगियों के बढ़ते
प्रशासनिक समेत अन्य पदों का नहीं दिया विज्ञापन
अस्पताल के निदेशक ने सबसे बड़ी गड़बड़ ये की कि एडमिन आफिसर डा. आकाशदीप सहित डा. मोना समेत तीनो डाॅक्टर जिन पदों पर बैठे हुए हैं, उनके लिए भर्ती विज्ञापन दिया ही नहीं हैं जबकि ये तीनों डाॅक्टर इन पदों के योग्य नहीं हैं और उन्होंने किसी तरह के इंटरव्यू तथा परीक्षा का सामना भी नहीं किया है. अस्पताल सूत्रों के अनुसार ये तीनों डाॅक्टर अस्पताल निदेशक के साथ ही दिल्ली सरकार के चिकित्सा विभाग के निदेशक को प्रभावित करके अपने पदों के लिए विज्ञापन नहीं निकलने दे रहे हैं. अस्पताल के कार्यवाहक एडमिन आफिसर डा. आकाशदीप, डा. मोना बरगोटिया और डिप्टी सुपरिंटेंडेंट डा. गौरव सिंघल ने अपने पदों पर भर्ती रोकने की साजिश रचकर विज्ञापन में नए नियम जुड़वा दिए.
सहायक प्रोफेसर कार्डियोलॉजी विभाग डॉ. गौरव सिंघल का कारनामा और अधिक दिलचस्प है. उन्होंने कार्डियोलाॅजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के सिर्फ एक पद के लिए ही विज्ञापन प्रकाशित होने दिया है ताकि वे स्वयं इस पद पर पदोन्नत होकर नियुक्त हो जाएं. जबकि अस्पताल के कार्डियोलाॅजी विभाग में प्रोफेसरों के तीन पद खाली हैं. इसके अलावा पल्मोनोलॉजी विभाग में भी प्रोफेसर का पद समाप्त कर दिया गया ताकि इस विभाग में कार्यरत डा. विकास डोगरा इस पद पर चयनित होकर प्रोफेसर का पद पा लें.
450 बेड का आईसीयू, 650 बेड सेंट्रल ऑक्सीजन के साथ
ये अस्पताल 450 बेड का आईसीयू, 650 बेड सेंट्रल ऑक्सीजन के साथ है। आपूर्ति, सभी 650 बिस्तर रिमोट नियंत्रित हैं, 200 वेंटिलेटर, 150 बाइपैप मशीनें, 80 उच्च प्रवाह नाक प्रवेशनी (एचएफएनसी) मशीनें (जो 650 बिस्तरों का आईसीयू चला सकती हैं) 650 उच्च अंत मॉनिटर, लगभग 350 करोड़ के उपकरण, लगभग 100 करोड़ के 12 अत्याधुनिक मॉड्यूलर हाई एंड ऑपरेशन थिएटर, 20 करोड़ की हाई एंड इकोकार्डियोग्राफी मशीनों के साथ दो अत्याधुनिक कैथ लैब, रेडियोलॉजी मशीनें सीटी स्कैन, सी-आर्म्स, 50 करोड़ की डिजिटल एक्स-रे, पैथोलॉजी, माइक्रो बायोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री विभाग के पास 100 करोड़ से अधिक मूल्य के उपकरणों से सुसज्जित है.
भरपूर सुविधा और उपकरण फिर भी 125 रोगी इंडोर में भर्ती
दिल्ली के गरीब इलाके ताहिरपुर में स्थित ये अस्पताल भरपूर मशीनरी, विश्वस्तरीय सुविधाओं के बाद भी लगभग 125 इनडोर रोगियों और 1000 से कम आउटडोर के साथ काम कर रहा है जबकि इसकी क्षमता सालाना कई लाख रोगियों का इलाज करने की है. अस्पताल के इस बुनियादी ढांचे की लागत 2000 (दो हजार करोड़) से अधिक है और वार्षिक रखरखाव लगभग 80 (अस्सी करोड़) प्रति वर्ष है। सबसे अधिक ताज्जुब ये जानकर होता है कि अस्पताल प्रशासन पिछले 10 सालों से दिल्ली सरकार से वेतन मद में मिलने वाले पैसे को वित्त वर्ष के अंत में सरकार को ये कहते हुए वापस भेज देता है कि उसके पास इस वेतन के वितरण के लिए सक्षम कार्मिक ही नहीं हैं.
अस्पताल निदेशक की मिलीभगत का आलम ये है कि मलाईदार पदों पर बिना योग्यता के बैठे ये डाॅक्टर पांच साल के लिए नियुक्त किए गए थे लेकिन इन्हें प्रक्रिया का पालन किए बिना और सक्षम मंजूरी नहीं लेने के बावजूद सभी को 5 साल से अधिक का एक्सटेंशन दिया गया है, जबकि नियुक्ति सिर्फ 5 साल के लिए थी. यहां तक कि कार्यकाल विस्तार देने वाली कार्यकारी समिति ने गवर्निंग काउंसिल को सूचित करने की जहमत तक नहीं उठाई जबकि सेवा विस्तार देने के लिए गवर्निंग काउंसिल की मंजूरी आवश्यक होती है.