दूरदर्शन राजस्थान का कांट्रक्चुअल गड़बड़झाला !
जयपुर. क्या कोई अपने घर में कचरा भरता है. ये सुन कर आपका हंसने का मन करेगा कि आज के जमाने में भी कोई कचरा महंगे दामों पर खरीदकर अपने घर में कबाड भरता है, लेकिन ये हकीकत है और सरकार के उस संस्थान में कचरा भरा जा रहा है, जिसके कंधों पर सत्तासीन सरकार की छवि को साफ-सुथरा बताने का जिम्मा है.
केन्द्र सरकार के इस संस्थान का नाम है दूरदर्शन. इसी दूरदर्शन के प्रादेशिक मुख्यालय पर न्यूज रुम में ऐसे लोगों को पत्रकार बताकर भर्ती किया जा रहा है, जिन्हें खबर है और स्क्रिप्ट यानि कहानी लिखना नहीं आता. इस भर्ती घोटाले में नियम-कायदों की बात करना भी बेमानी होगा लेकिन सोशल मीडिया के इस जमाने में किसी भी गलती को छुपना सम्भवत: मुमकिन नहीं है और इन दिनों लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान जनता ये देख भी रही है कि मोदी सरकार के कठोर नियंत्रण के बावजूद उसके कारनामे जनता के सामने आ रहे हैं.
दूरदर्शन राजस्थान की हालत का अंदाजा सिर्फ इससे लगाया जा सकता है कि सरकारी खबरों पर एकाधिकार होने के बावजूद उसके विभिन्न न्यूज बुलेटिनों के वीडियो यू-ट्यूब पर एक लाख वीवर (दर्शक) का आंकडा पिछले एक साल में छू नहीं पाए हैं.
अधिकांश वीडियो वन (के) से पहले तोड़ देते हैं दम
राह चलतों को दूरदर्शन निदेशालय दिल्ली के कुछ बेइमान अफसरों से मिलीभगत करके जिन चहेतों को ₹80000 प्रति माह की बैकडोर एंट्री से नौकरी लगाने की कवायद की जा रही है. इसके नतीजे दूरदर्शन राजस्थान पूर्व में भी भुगत चुका है. पहले भी वह इसी तरह से चहेतों को गेस्ट एडिटर ड्यूटी पर लगाकर दूरर्शन के वीडियोज को यू-ट्यूब पर दम तोड़ते हुए आज तक भुगत रहा है. हालात ये हैं कि उसके न्यूज बुलेटिनों में सिर्फ विधानसभा चुनाव और एक-दो अन्य बुलेटिन ही दस हजार दर्शकों का आंकडा छू पाए हैं. अन्यथा उसके अधिकांश वीडियो एक हजार यानि वन (के) तक पहुंचने से पहले ही हांफते हुए दर्शक जुटाने की दौड़ से बाहर हो जाते हैं.
अभी तक 50 हजार सब्सक्राइबर भी नहीं
पूरे मामले में यू-ट्यूब की चर्चा सिर्फ इसलिए की जा रही है कि आज तमाम प्राइवेट चैनल दर्शक संख्या मापने वाली संस्था बार्क के आंकडों की अपेक्षा यू-टयूब पर दर्शक संख्या और सब्सक्राइबर को आधार बनाकर विज्ञापन की रेट तय करते हैं, लेकिन अफसोस, दूरदर्शन जयपुर के पास अभी तक पचास हजार सब्सक्राइबर भी नहीं हैं, जबकि उसके वीडियो की संख्या 2 हजार 500 सौ से अधिक है. कारण वही क्वालिटी. उसके कंटेंट की क्वालिटी इतनी खराब और बेमजा है कि यू-ट्यूब दर्शक उसे क्लिक करना तक पसंद नहीं करते. यहां तक कि उसके थम्बनेल भी बेहद घटिया हैं. उल्लेखनीय है कि यू-ट्यूब पर ये माना जाता है कि कंटेंट भले ही हल्का हो, लेकिन थम्बनेल ऐसा हो कि यूजर क्लिक करने पर मजबूर हो जाए लेकिन दूरदर्शन राजस्थान के वीडियोज का थम्बनेल देखकर दर्शक तेजी से स्क्रॉल करके आगे बढ़ जाते हैं.
अब सवाल है कि इतना कुछ गड़बड़ होने के बाद भी जयपुर दूरदर्शन केंद्र के न्यूज़ रूम में इन दिनों नियम और कायदे कानून की धज्जियां क्यों उड़ाई जा रही हैं, क्या अधिकारियों विशेषकर प्रसार भारती और दूरदर्शन निदेशालय के अधिकारी क्वालिटी कंट्रोल की अपेक्षा कचरे को दूरदर्शन राजस्थान में भर्ती कैसे होने दे रहे हैं. क्या वहां किसी भी तरह की चेक एंड डायरेक्शन की पर ध्यान देने का कोई मैकेनिज्म ही नहीं है.
बिना प्रोसिडिंग चहेतों को बैकडोर एंट्री !
असल में दूरदर्शन के सूत्रों का दावा है कि मलाई खाने में जुटे दूरदर्शन राजस्थान के अधिकारी दिल्ली के कथित आकाओं को खुश करने के लिए बैकडोर एंट्री का जो दरवाजा खोलकर बैठे हैं, उसकी आड़ में वे दूरदर्शन राजस्थान को मिलने वाले न्यूज कवरेज बजट के तहत विभिन्न भत्तों और अन्य सुविधाओं की बंदरबांट करके अपने आर्थिक हित साधते हैं. दिल्ली दूरदर्शन निदेशालय के सूत्रों का कहना है कि दूरदर्शन राजस्थान के अधिकारी दिल्ली में बैठे आकाओं के इशारे पर बिना प्रोसिडिंग चहेतों को ₹80000 प्रति माह की बैकडोर एंट्री देने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं.
असल में 27 जुलाई 2023 को प्रसार भारती ने एंकर कम कॉरेस्पोंडेंट, वीडियो एडिटर, कॉपी एडिटर, बुलेटिन एडिटर, पैकेजिंग असिस्टेंट, असाइनमेंट कोर्डिनेटर, ब्रॉडकास्ट एग्जीक्यूटिव और सीनियर कॉरेस्पोंडेंट के कांट्रक्चुअल स्टाफ भर्ती की विज्ञप्ति निकाली थी। इन सभी सभी पदों के लिए इंटरव्यू सहित तमाम औपचारिकताएं भी पूरी की गईं. उसके बाद सीनियर कॉरेस्पोंडेंट के पद पर किसी को भर्ती नहीं किया गया और इस पद को खाली छोड़ दिया गया.
विज्ञप्ति नहीं ना ही इंटरव्यू कॉल
सूत्रों का कहना है कि भर्ती इसलिए नहीं की गई क्योंकि सीनियर कॉरस्पॉडेंट के लिए एक और व्यक्ति दिल्ली का फरमान लेकर आ गया. आला अधिकारियों की मर्जी का व्यक्ति भर्ती करने की आड़ में दूरदर्शन राजस्थान के न्यूज रुम अधिकारियों ने रिक्त पदों की संख्या बढ़ाकर दो कर दी। वे यहीं नहीं थमे बल्कि दोनों पदों के लिए नए सिरे से विज्ञप्ति तक नहीं निकाली गई. ना ही कोई इंटरव्यू कॉल दिया गया.
जबकि नियम कहते हैं कि सरकारी भर्ती के लिए विज्ञापन देना आवश्यक है. लेकिन किसी को कानों-कान खबर होती उससे पहले ही दिल्ली और जयपुर दूरदर्शन अधिकारियों ने ऐसे व्यक्ति को पोस्टिंग देने की बिसात बिछा दी, जिसमें अंडर द टेबल गड़बड़ के आरोप न्यूज रुम में दबे स्वरों में कभी भी सुने जा सकते हैं. पूरे मामले की सबसे मजेदार बात ये कि एक ऐसे व्यक्ति के लिए पद एक से दो किए गए जिसकी प्रदेश में सत्तासीन सरकार को कंट्रोल करने वालों से नजदीकियां जग जाहिर हैं. लेकिन अफसोस इस बीच लोकसभा चुनाव की आचार संहिता जारी हो गई और पोस्टिंग अटक गई.