सुभाष राज
स्वतंत्र पत्रकार
नई दिल्ली. क्या चाकलेट्स पर्यावरण की दुश्मन हैं ? क्या वे ओजोन परत को भारी नुकसान पहुंचाती हैं ? क्या चाकलेट्स के निर्माण के दौरान निकलने वाले केमिकल और अन्य प्रदूषक जबर्दस्त कार्बन फुटप्रिंट पैदा करके पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं ? इन सभी सवालों के जवाब हाल ही कोकोट्रेट सस्टेनेबल चाकलेट्स बनाने वाली कंपनी ने पूरी ईमानदारी से दिए हैं. कंपनी ने कहा है कि उसकी 45 ग्राम की एक डार्क चाकलेट बार बनाने पर 1.34 किलोग्राम कार्बन फुटप्रिंट पैदा होता है. यानी एक किलोग्राम चाकलेट बनाने पर लगभग 27 किलोग्राम कार्बन फुटप्रिंट निकलता है.
जहां तक चाकलेट बनाने पर निकलने वाले कार्बन फुटप्रिंट के अंतरराष्ट्रीय मानकों का सवाल है तो वह प्रति 50 ग्राम डार्क चाकलेट बार पर 0.95 किलोग्राम कार्बन फुटप्रिंट है. कार्बन फुटप्रिंट की गणना करने वाली वेबसाइट co2everything.com के अनुसार चाकलेट बनाने पर भारत में ज्यादा फुटप्रिंट उत्सर्जन का कारण पुरानी मशीनरी का इस्तेमाल करना है. जबकि विदेशी कंपनियां डार्क चाकलेट बनाने के लिए बेहतरीन और आधुनिक मशीनरी का उपयोग करती हैं. इसलिए भारत में चाकलेट बनाने पर उत्सर्जित होने वाले फुटप्रिंट की मात्रा और वैश्विक मानक में इतना बड़ा अंतर है.
भारत में कोकोट्रेट सस्टेनेबल चॉकलेट्स बनाने वाली कंपनी के अनुसार वैश्विक चॉकलेट उद्योग के मुकाबले उसकी चाकलेट बनाने पर प्रति 45-ग्राम डार्क चॉकलेट बार औसतन 1.34 किलोग्राम कार्बन फ़ुटप्रिंट उत्सर्जित करती है. चूंकि कंपनी ने कार्बन फुटप्रिंट कम करने पर ध्यान केन्द्रित करने की कोशिश की है, इसलिए उसने पैकेजिंग सामग्री में कागज या प्लास्टिक का उपयोग बंद कर दिया है. इससे चॉकलेट बनाने की प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन कम होता चला जाएगा.
कंपनी का लक्ष्य कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए किसानों और उपकरण निर्माताओं से सहयोग बढ़ाना है ताकि वे भी कार्बन फुटप्रिंट बढ़ाने में सहयोग करें. कोकोट्रेट के सह-संस्थापक एल नितिन चोरडिया के अनुसार कोकोट्रेट का कार्बन फुटप्रिंट उत्सर्जन कम करने का ये प्रयास स्वैच्छिक है और कंपनी इसे जारी रखेगी.
फुटप्रिंट बढ़ाने में बिग बी व बादशाह का परोक्ष हाथ
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार चाकलेट बनाने पर निकलने वाले कार्बन फुटप्रिंट को कम करने का उपाय नहीं किया गया तो दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश बड़ी मुसीबत में फंस जाएगा क्योंकि देश में इन दिनों चाकलेट खाने का चलन लगातार बढ़ रहा है. इसमें भारत के बिग बी कहलाने वाले अमिताभ बच्चन का भी हाथ है, जिन्होंने पिछले दशक में पैसे पप्पू देगा पंचलाइन वाले विज्ञापन में काम करके चाकलेट की बिक्री पांच गुना तक बढ़ा दी थी.
अब भी वे कुछ मीठा हो जाए पंचलाइन वाले विज्ञापन के जरिए चाकलेट्स की बिक्री बढ़ा रहे हैं. हालांकि कार्बन फुटप्रिंट बढ़ाने वाले उत्पादों का विज्ञापन करके मोटी कमाई करने वाले अभिनेताओं में अमिताभ बच्चन अकेले नहीं है. बॉलीवुड बादशाह कहलाने वाले शाहरूख खान भी बोलो जुबां केसरी पंचलाइन वाले विज्ञापन के माध्यम से पान मसाले का उपयोग करने के लिए युवाओं को प्रेरित कर रहे हैं. इसमे उनका साथ देशभक्ति की गई फिल्मों में काम कर रहे अजय देवगन भी दे रहे हैं. इससे पहले अक्षय कुमार भी उनका साथ देते थे लेकिन इन दिनों उन्होंने ये विज्ञापन छोड़ दिया है. इसके अलावा देश के क्रिकेट खिलाड़ी भी ऐसे उत्पादों का विज्ञापन कर रहे हैं जिनके उत्पादन के दौरान भारी मात्रा में प्रदूषित पानी तथा कार्बन फुटप्रिंट रिलीज होता है. कई तो बोतलबंद पानी की आड़ में शराब और बीयर का विज्ञापन भी करते हैं.