सुभाष राज
{स्वतंत्र पत्रकार}
नई दिल्ली.मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में एक माह से भी कम समय में दो चीतों की मौत ने ऐसे सवाल खड़े किए हैं, जिनका जवाब केन्द्र और राज्यों में कोई भी नहीं देना चाहता है क्योंकि चीता पुन:बसाओ परियोजना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर बनाई गई है. लेकिन वहां अफ्रीकी जंगलों से लाए गए चीतों की एक के बाद एक मौत ने वन्यजीव विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है.
ये विशेषज्ञ मान रहे हैं कि अफ्रीकी चीतों की मौत के कारणों की विस्तृत जांच जरूरी है अन्यथा ये परियोजना बंद करनी पड़ सकती है. सवालों के बिंदुवार जवाब यहां पेश हैं.
तनाव की वजह से मौत का शिकार हुए हैं कूनों में छोड़े गए दो अफ्रीकी चीते ?
अफ्रीका से लाए गए चीतों के लिए छोटा पड़ रहा है मध्यप्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान ?
मध्यप्रदेश वन विभाग ने केन्द्र को भेजे एक मांगपत्र में स्वीकार किया है कि कूनो का क्षेत्रफल कम होने से शिकार होने वाले जानवरों की संख्या भी कम है.
वर्ष 2022 के सितम्बर महीने में नामीबिया व दक्षिण अफ्रीका से हवाई मार्ग से लाए गए 20 चीतों के रखरखाव की व्यवस्था भी अधूरी है.
एक चीते की निगरानी के लिए 9 कर्मचारी चाहिए. लेकिन कूनों में ये अनुपात पूरा नहीं है. इन चीतों को भारत की चीता पुनर्स्थापन परियोजना के तहत हिंदुस्तान लाया गया है.
अब बात क्षेत्रफल की. चीता विशेषज्ञों का दावा है कि एक चीते का इलाका 100 वर्ग किलोमीटर तक होता है लेकिन कूनों का कोर और बफर जोन मिलाकर कुल क्षेत्रफल ही 1235 वर्ग किलोमीटर का है.
इस क्षेत्रफल में सिर्फ 12 चीते ही रह सकते हैं लेकिन यहां 20 चीतों को रखा जा रहा है.
इसी तनाव में मार्च 2023 में छह साल के उदय और साशा नामक चीते की एक माह से भी कम समय में मौत हो गई.
पवन नाम का चीता कूनों से कई बार बाहर भटकता पकड़ा गया है.
शायद इसी वजह से मध्यप्रदेश वन विभाग के वन्यप्राणी विंग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक जे.एस. चौहान ने मीडिया को बताया कि एनटीसीए से चीतों को वैकल्पिक स्थान पर ट्रांसफर करने को कहा गया है.
एनटीसीए को सुझाया गया है कि गांधी सागर अभयारण्य के साथ ही नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य वैकल्पिक स्थल हो सकता है.
केन्द्र ने सुझाव नहीं माने तो बर्बाद हो सकती है चीता परियोजना.
चीतों की मौत के असली कारणों की जांच में मध्यप्रदेश सरकार की दिलचस्पी न के बराबर है लेकिन पीएमओ से पड़ रहे दवाब के चलते वह तमाम तरह की बहानेबाजी कर रहा है. एमपी के वाइल्ड लाइफ अधिकारी कभी सेटेलाइट कॉलर आईडी को जिम्मेदार बताते हैं तो कभी कहते हैं कि यहां की गर्मी चीते सहन नहीं कर पाए. इसके अलावा भी वे कई बहाने बना चुके हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनकी मौत का जिम्मेदार किडनी फेलियर बताया गया.
राजस्थान में प्रोजेक्ट टाइगर से जुड़े एक अधिकारी का कहना है कि चीतों की मौत का असली कारण भोजन नहीं मिलना है क्योंकि कूनो में वे जानवर नहीं हैं जिनका शिकार चीता करता है. बिल्ली परिवार में शेर, बाघ और तेंदुए के बाद चीते का चौथा नम्बर है और वह वजन में छोटे जानवरों का शिकार करता है. जबकि कूनो में चीते के शिकार के लिए मुफीद जानवरों का अभाव है. इसके अलावा चीते खुले मैदानों में शिकार करते हैं जबकि कूनों का जंगल घना तथा कांटेदार झाड़ियों से भरा हुआ है. इस वजह से चीतों को भोजन की किल्लत हो गई और उन्होंने दूसरे जानवरों के शिकार से बचे हिस्से खाना शुरू कर दिया. जिससे उन्हें इंफेक्शन ने जकड़ लिया.
कूनो में कब क्या हुआ
17 सितंबर को कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से आठ चीते लाए गये
दूसरी खेप में 12 चीतों को साउथ अफ्रीका से 18 फ़रवरी को लाया गया था.
नामीबिया की मादा चीता ‘ज्वाला’ ने कूनो पार्क में 24 मार्च को चार शावकों को जन्म दिया था.
नामीबिया से आयी चीता ‘साशा’ की मौत 27 मार्च को किडनी ख़राब होने की वजह से हुई.
23 अप्रैल को चीता ‘उदय’ की मौत हुई, उसे साउथ अफ्रीका से लाया गया था.