उमेश कुमार
नई दिल्ली. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की कमान फिर से अपने हाथ में लेने का कारण ललन सिंह के जदयू तोड़ कर पार्टी को राष्ट्रीय जनता दल में विलय करने की साजिश को माना जा रहा है. दूसरी ओर ललन समर्थक कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने पुराने सहयोगी भाजपा की गोद में बैठना चाहते हैं और ललन के रहते ये सम्भव नहीं था.
सूत्रों का कहना है कि असल में जातीय जनगणना के बाद यह तय हो गया था कि बिहार की राजनीति पूरी तरह से पिछड़ा वर्ग पर केंद्रित रहेगी। जदयू की कमान अगड़े वर्ग के हाथ में रखकर नीतीश कुमार पिछड़ा वर्ग के गुस्से का खामियाजा नहीं भुगतना चाहते थे। ललन सिंह के अध्यक्ष रहने से पिछड़े वर्ग का बड़ा वोट बैंक राजद के पास सरकने का डर था।
लालू यादव और उनके पुत्र तेजस्वी यादव बिहार में पिछड़े के सर्वमान्य नेता बन सकते थे। नीतीश कुमार जातीय जनगणना के बाद इस परिणाम को भांप चुके थे। जातीय जनगणना के बाद से ही नीतीश कुमार पर यह दबाव बनने लगा था कि जदयू की कमान किसी पिछड़े वर्ग को सौंपी जाए।
चुनाव के ऐन मौके पर नीतीश कुमार यह जिम्मेदारी दूसरों को सौंपने की जोखिम नहीं उठा सकते थे। ऐसे में नीतीश कुमार स्वयं ही इस कमान को अपने हाथ में लेने का ठान लिया था। नीतीश कुमार को लगता है कि कमान हाथ में आने पर कुर्मी के अलावा कोइरी वोट बैंक को भी साधने में मदद मिलेगी। इतना ही नहीं नीतीश कुमार के हाथ में कमान आने से अति पिछड़ा वर्ग और महादलित दांव भी जदयू के पक्ष में फिर से खड़ा हो सकता है।
यह वोट बैंक सीधे तौर पर राजद के साथ जाने की स्थिति में आ चुका था। नीतीश कुमार ने अध्यक्ष पद संभाल अपने इस पुराने वोट बैंक पर फिर से पकड़ बनाने में जुट जाएंगे। दूसरी ओर बिहार में नीतीश कुमार के प्रति अगड़े वर्ग में भी ज्यादा नाराजगी नहीं देखने को मिलती है। अगड़ा वर्ग का वोट भी जदयू को मिलता रहा है।
बिहार में बना रहेगा महागठबंधन !
जदयू के राज्यसभा सांसद रामनाथ ठाकुर ने कहा कि ललन सिंह ने चुनाव लड़ने के लिए अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी से मुक्त करने का आग्रह किया था। उनके इस आग्रह को स्वीकार कर लिया गया। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि कार्यकारिणी की बैठक में एक राजनीतिक प्रस्ताव, बिहार में जातीय जनगणना कराने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद करने का एक प्रस्ताव और संसद से 147 सांसदों को निलंबित किए जाने से संबंधित एक निंदा प्रस्ताव पेश किया गया। जिस पर कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से अपनी मुहर लगा दी। सांसदों के निलंबन प्रस्ताव पेश कर जदयू ने यह साफ कर दिया कि भाजपा की नीतियों का विरोध जारी रहेगा। विरोध जारी रहने का संकेत महागठबंधन के बने रहने की ओर इशारा कर रहा है।