नई दिल्ली. आल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस ने दावा किया है कि दिल्ली, पंजाब, गुजरात, असम, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में यूनानी चिकित्सा के साथ ही उसके चिकित्सकों और यूनानी अस्पतालों तथा डिस्पेंसरीज की हालत बेहद खराब है. दूसरे शब्दों में कहें तो वह मरणासन्न स्थिति में है क्योंकि इन सातों राज्यों की सरकारें यूनानी चिकित्सा की बहबूदी पर ध्यान नहीं दे रही हैं.
ऑल इंडिया यूनानी तिब्बी कांग्रेस के राष्ट्रीय संगठन सचिव डॉ. डीआर सिंह का कहना है कि जिस यूनानी चिकित्सा पर सिकंदर महान को पूरा भरोसा था और कई सदी से ये पद्धति भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद से कदम ताल कर रही है. उससे ये साफ हो जाता है कि रोगों का समूल नाश करने में यूनानी किसी भी अन्य चिकित्सा पैथी से कम नहीं है. इसके बावजूद देश के विभिन्न राज्यों की सरकारें यूनानी चिकित्सा के प्रति पक्षपाती रवैया रखती हैं और इसी वजह से उसके लिए बजट का आवंटन सबसे कम होता है. बजट देने के मामले में दिल्ली, पंजाब, गुजरात, असम, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश सरकार हर साल कंजूसी करती हैं. जिससे यूनानी चिकित्सा की हालत दिन—प्रतिदिन खराब हो रही है. ये सरकारें यूनानी चिकित्सा पद्धति के प्रति पूर्वाग्रह ग्रस्त व्यक्ति की तरह व्यवहार करती हैं और उसकी बेहतरी के लिए किए जाने वाले पत्रव्यवहार का जवाब तक नहीं देती हैं.
इन राज्यों में असम का हाल तो इतना बुरा है कि उसने यूनानी डाक्टरों का इंडियन मेडिसीन बोर्ड की राज्य इकाई में यूनानी चिकित्सकों से पंजीकरण पर ही रोग लगा दी गई है. तिब्बी कांग्रेस ने असम के मुख्यमंत्री को पत्र भेजा, लेकिन ना कार्रवाई हुई और ना ही पत्र का जवाब आया. यही हाल दिल्ली के आयुष विभाग का है. भारतीय चिकित्सा परिषद दिल्ली (DBCB)के चुनाव कई सालो से नहीं कराए गए हैं. डिप्टी डायरेक्टर यूनानी की पोस्ट लम्बे समय से खाली है. हद तो तब हो गई जब उत्तराखंड सरकार ने कलियर शरीफ में सरकारी यूनानी मेडिकल कॉलेज का निर्माण कार्य बंद कर दिया गया.
उत्तराखंड में 19 आयुर्वेदिक कॉलेज और एक आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय है. लेकिन यूनानी कॉलेज एक भी नहीं है. गुजरात, असम, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, हिमाचल में बीस साल से यूनानी डॉक्टरों की नियुक्ति नहीं की गई है. राज्यों में आयुष के नाम पर आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक डॉक्टरों की नियुक्ति होती है.