डॉ. सुनिल शर्मा
जयपुर. कहते है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं करना चाहिए, लेकिन मछली की एक प्रजाति ऐसी है, जो बिना बैर के भी करीब करीब सभी जलीय जीवों को अपना भोजन बना लेती है। इसके कारण मछलियों की कई प्रजातियां या तो विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गई हैं। हमारे देश मछली की इस विशेष प्रजाति को पालने और बेचने पर राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगा रखा है। मछली की इस प्रजाति को थाई मांगुर के नाम से जाना जाता है। हाल ही वाराणसी में मत्स्य विभाग ने इस प्रजाति की 15 टन मछलियों को नष्ट कर दिया।
बहुत खतरनाक है यह मछली
थाईलैंड में विकसित की गई इस मांसाहारी मछली की विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है, जहां दूसरी मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है, लेकिन यह फिर भी जिंदा रहती है। थाई मांगुर छोटी मछलियों समेत यह कई अन्य जलीय कीड़े-मकोड़ों को खा जाती है। इससे तालाब का पर्यावरण भी खराब हो जाता है। थाई मांगुर पर्यावरण के लिए खतरनाक होती हैं, ये तालाब में रहने वाली दूसरे मछलियों को भी खा जाती हैं, इसीलिए एनजीटी ने इसे पूरी तरह से बैन कर दिया है। कई तरह की मछलियों को थाई मांगुर ने नष्ट कर दिया है, ये मछलियां गंदे से गंदे पानी में भी रह सकती हैं, अगर मछलियां गंदगी में रहेंगी तो इंसानों के लिए भी तो नुकसान दायक होंगी।
लालच में नहीं छोड़ रहे मोह
थाई मांगुर पर प्रतिबंध लगने के बाद भी कई प्रदेशों में इसे पाला जा रहा है। फरवरी, 2020 में महाराष्ट्र में 32 टन थाई मांगुर मछलियों को नष्ट कर दिया गया था। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में थाई मांगुर को नष्ट किया गया था। थाई मांगुर को अफ्रीकन कैट फिश के नाम से भी जाना जाता है। मछली पालक अधिक मुनाफे के चक्कर में तालाबों और नदियों में प्रतिबंधित थाई मांगुर को पाल रहे है क्योंकि यह मछली चार महीने में ढाई से तीन किलो तक तैयार हो जाती है जो बाजार में करीब 80-100 रुपए किलो मिल जाती है। इस मछली में 80 फीसदी लेड और आयरन के तत्व पाए जाते है। राष्ट्रीय मत्स्य आंनुवशिकी ब्यूरो के तकनीकी अधिकारी बताते हैं कि इसको खाना इंसानों के लिए भी नुकसानदायक होता है, लोगों को जागरुक करने के लिए अभियान भी चलाया जाता है लेकिन चोरी छिपे लोग इसे पाल भी रहे हैं और बाजार में बिक रही है।
बीस साल पहले से ही रोक
पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली थाई मांगुर पालन को पूरे देश में प्रतिबंधित किया गया है। राष्ट्रीय हरित क्रांति न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने साल 2000 को ही इसके पालन पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन फिर से 20 जनवरी 2019 को इस बारे में निर्देश भी दिए थे कि सभी प्रदेशों और केंद्र शाषित राज्यों में थाई मांगुर पालन को प्रतिबंधित किया जाए और जहां भी इसका पालन हो रहा हो उसे नष्ट किया जाए। इसके बावजूद देश के अलग-अलग राज्यों में चोरी से थाई मांगुर का पालन किया जा रहा है। पश्चिमी यूपी में चोरी से लोग इसका पाल रहे हैं, जबकि कई बार पकड़े भी जा चुके हैं।