नई दिल्ली. केन्द्र की मोदी सरकार भले ही ये दावा करे कि उसने समय पर लॉकडाउन लगाकर लाखों लोगों की जान बचा ली लेकिन असलियत इसके विपरीत है। वह इतनी भयावह है कि उसके बारे में जानकर आपकी रुह कांप उठेगी।
भारत के गरीब लॉकडाउन के चलते न सिर्फ भुखमरी के कगार पर हैं बल्कि हरी सब्जियां और पौष्टिक भोजन उनकी थाली से पूरी तरह गायब हो गया है। ये निष्कर्ष उस हंगर वाच रिपोर्ट का है जिसे भोजन का अधिकार अभियान ने कुछ गैर-सरकारी संगठनों के साथ प्रकाशित किया है।
हंगर वॉच रिपोर्ट के मुताबिक 11 राज्यों में सितंबर और अक्टूबर, 2020 के बीच कराए गए सर्वे शामिल 3,994 लोगों की सैलरी 7,000 रुपये महीने से कम थी। इनमें उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु राज्य शामिल थे।
न्यू इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने रिपोर्ट के हवाले से कहा है कि कमजोर आदिवासी समूहों के लगभग 77 फीसदी परिवारों, 76 फीसदी दलितों और 54 फीसदी आदिवासियों ने बताया कि सितंबर-अक्टूबर में लॉकडाउन से पहले की तुलना में उनके भोजन में कमी आई है। 53 फीसदी ने बताया कि चावल/गेहूं की खपत सितंबर-अक्टूबर में घट गई। 64 फीसदी लोगों ने कहा कि दाल की खपत कम हो गई और 73 फीसदी ने कहा कि उनकी हरी सब्जियों की खपत पिछले दो महीनों में कम हो गई है।
लगभग 56 प्रतिशत लोगों ने बताया कि उन्हें लॉकडाउन से पहले कभी भी भोजन छोड़ना नहीं पड़ा था। सितंबर और अक्टूबर में 27 प्रतिशत लोगों को बिना भोजन सोना पड़ा। 20 में से लगभग एक परिवार अक्सर बिना खाए सोता है।
गुजरात में 20.6 फीसदी परिवारों ने कभी-कभी भोजन की कमी के कारण भोजन छोड़ दिया, जबकि 28 फीसदी ने कहा कि उन्हें भोजन के बिना सोना पड़ा। राज्य के नौ जिलों- अहमदाबाद, आणंद, भरूच, भावनगर, दाहोद, मोरबी, नर्मदा, पंचमहल और वडोदरा में पाया गया कि गुजरात में कई राशन कार्ड को निष्क्रिय कर दिया गया है। लगभग 71% मांसाहारी अंडे या मांस नहीं खरीद पाए।