नीदरलैंड की कम्पनी ने खेतों में उगाए दस ताबूत
नई दिल्ली. लावारिस पड़े रहने पर इंसानी शव सड़ा गला खाने वाले जानवरों के काम आता है, इस तथ्य से समूची दुनिया वाकिफ है लेकिन क्या इंसानी शव कब्र में रहकर पेड़—पौधों को भोजन दे सकता है? इस सवाल का जवाब नीदरलैंड की एक कंपनी ने दिया है जिसने ऐसे ताबूत उगाए हैं जिनमें रखकर दफनाया गया इंसानी शव पेड़ पौधों की ताकतवर खुराक में बदल जाता है।
फंगस से बनता है ताबूत
लूप नामक कंपनी ने ताबूत लकड़ी की बजाय फंगस से बनाया है। कंपनी का कहना है कि इस खास ताबूत की मदद से मृतक के शरीर को इस तरह विघटित किया जा सकेगा कि वह पेड़ पौधों के लिए पोषक तत्व के रूप में बदल जाए। यही कारण है कि कंपनी उसे जिंदा ताबूत कह रही है क्योंकि इसमें रखे गए व्यक्ति का शरीर प्राण छोड़ने के बाद भी अनगिनत पेड़-पौधों को जीवन दे सकेगा।
मायसीलियम फंगस बनाता है ताबूत
ताबूत की बाहरी दीवारें मायसीलियम से बनी हुई हैं। मशरूम जैसे किसी फंगस का मिट्टी के भीतर जड़ों जैसा दिखने वाला हिस्सा मायसीलियम कहलाता है। ताबूत के भीतर काई की एक मोटी परत बिछाई गई है जो विघटन को तेज करने में मदद करती है। असल में मायसीलियम प्रकृति के सबसे बढ़िया रिसाइकिल एजेंटों में से एक है। मायसीलियम लगातार भोजन की तलाश करता रहता है और उसे पौधों के लिए पोषक पदार्थों में बदलता रहता है।
परमाणु विकिरिण को भी खा जाता है मायसीलियम
इसका एक और अहम गुण यह है कि मायसीलियम जहरीले पदार्थों को भी खा सकता है और उन्हें भी पौधों के काम के पोषक तत्वों में बदल देता है। इसी खास गुण के कारण परमाणु हादसा झेलने वाले चेर्नोबिल में मायसीलियम का इस्तेमाल मिट्टी को साफ करने में किया गया। ताबूत बनाने में इसका इस्तेमाल करने के पीछे भी यही सोच थी। शवों को दफनाने की जगह पर भी यही होता है। वहां भी मिट्टी बहुत प्रदूषित होती है और वहां मायसीलियम को उसकी पसंदीदा धातुएं, तेल और माइक्रोप्लास्टिक मिल जाते हैं।
सांचे पर उगाया जाता है ताबूत
इस ताबूत को किसी पौधे की ही तरह उगाया जाता है और एक ताबूत को उगाने में एक हफ्ते का समय लग जाता है। मायसीलियम को फलने फूलने के लिए लकड़ी की पतली पतली परतों के साथ मिला कर सांचे पर फैला दिया जाता है। करीब एक हफ्ते के बाद इसे सांचे से निकाल कर सुखाया जाता है और तब वह इतना मजबूत होता है कि 200 किलो तक का भार उठा सके।
सवा लाख भारतीय रूपया है कीमत
एक बार मृत शरीर के साथ मिट्टी में गाड़ दिए जाने के 30 से 45 दिनों में यह ताबूत धरती में मौजूद पानी के संपर्क में आकर गल जाता है। केवल 2 से 3 सालों में ही शव पूरी तरह गल जाएगा. पारंपरिक ताबूतों में दफनाए जाने वाले शवों को इसमें 10 से 20 साल लगते हैं। अब तक ऐसे दस ताबूत उगाए और बेचे जा चुके हैं। ऐसे एक ताबूत की कीमत 1,500 यूरो यानि करीब सवा लाख भारतीय रुपये है।