मिलती है घोडे जैसी ताकत
नई दिल्ली. एक परजीवी फफूंद एक कीड़े का इतना शोषण करता है कि अंत में वह कीड़ा देसी वियाग्रा की शक्ल ले लेता है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में 40 से 50 लाख रुपए किलो बिकने वाले इस कीड़े को हिमालयन वियाग्रा भी कहा जाता है। बाजार में इसे कीडाजडी के नाम से जाना जाता है। इसका सालाना व्यापार लगभग 70 हजार करोड़ का है।
हिमालय की कंदराओं में पाई जाने वाली कीडाजडी उत्तराखंड के धारचूला से करीब 40 किलोमीटर दूर छिपला केदार के इलाके में पाई जाती है। ऊंचे पहाड़ी बुग्यालों पर मिलने वाली इस हिमालयी बूटी को स्थानीय भाषा में कीड़ाजड़ी कहा जाता है।
टीबी, कैंसर के इलाज में आती है काम
हिमालयन वियाग्रा के नाम से मशहूर कीड़ाजड़ी को ट्यूमर, टीबी, कैंसर और हेपेटाइटिस जैसी जानलेवा बीमारियों का इलाज माना जाता है। एक फफूंद एक कीड़े पर हमला करता है और परजीवी की तरह उसका शोषण करता है। फफूंद और कीड़े का यही संयोग कीड़ाजड़ी के नाम से जाना जाता है। भारत के पश्चिमी और मध्य हिमालयी क्षेत्र के अलावा ये तिब्बत, नेपाल और भूटान में पाई जाती है।
चीन, सिंगापुर, ताइवान, इंडोनेशिया और अमेरिका में इसकी काफी मांग है। लगभग दो दशक पहले तक करीब 20 हजार रुपये प्रति किलो में मिलने वाली कीड़ाजड़ी की कीमत अब आसमान छू रही है। कीड़ाजड़ी निकालने का कारोबार गैरकानूनी तरीके से तस्करी के जरिये किया जाता है। बाजार में कीड़ाजड़ी की अधिक कीमत पाने के लिए उसे जल्द निकालने की होड़ बनी रहती है। जितना जल्दी इसे निकाला जाए इसकी कीमत उतनी अधिक मिलती है। ये गांजे के पौधों पर सबसे अधिक पैदा होता है।