सुभाष राज
नई दिल्ली. केन्द्रीय असेम्बली बम कांड में मुकदमे का सामना कर रहे भगत सिंह और उनके साथियों की की वजह से भारत को मिले संविधान में नागरिकों की वैयक्तिक स्वतंत्रता को मान्यता दी गई। इसके अलावा औद्योगिक विवाद की स्थिति में मजदूरों को हड़ताल का अधिकार भी भगतसिंह और उनके साथियों की देन है।
सम्भवत: स्मार्टफोन और सोशल मीडिया युग में जी रही भारत की नई पीढ़ी को ये ज्ञात ही नहीं होगा कि भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों ने केन्द्रीय असेम्बली में 8 अप्रैल 1929 को ही बम क्यों फेंका था ? असल में लाहौर में लाला लाजपतराय की हत्या का बदला लेने के बाद अंग्रेजों को चकमा देकर कलकत्ता पहुंचे भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद समेत हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ये मौका ढूंढ रही थी कि एक ऐसा धमाका किया जाए जिससे देश के नौजवान स्वतंत्रता के लिए उठ खड़े हों।
इस बीच तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि वह 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेंबली में दो विधेयक “जन सुरक्षा बिल” और “औद्योगिक विवाद बिल” पेश करेगी। “जन सुरक्षा बिल” का उद्देश्य क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलना और पूंजीपतियों के शोषण के खिलाफ उठ खड़े हुए मजदूरों को हड़ताल से वंचित करना था।
भगत सिंह, चन्द्रशेखर और उनके साथी इन दोनों विधेयकों का विरोध कर रहे थे लेकिन उन्हें पारित होने से रोकने का उनके पास कोई अधिकार नहीं था और कांग्रेस के केन्द्रीय असेम्बली में चुनकर आए सदस्य उसका पूरी ताकत से विरोध करने की स्थिति में नहीं थे।
भगतसिंह ने दिलाया था पूर्ण स्वराज
आज के युवाओं की जानकारी में ये ऐतिहासिक तथ्य नहीं है कि संविधान उन्हें उस क्रांतिकारी भगतसिंह की देन है जिसकी एक ललकार से स्वतंत्रता संग्राम के सर्वोच्च लीडर महात्मा गांधी ने अचानक अपनी रणनीति बदल दी और देश को पूर्ण स्वराज मिल गया।
केन्द्रीय असेम्बली में 8 अप्रेल 1929 को बम फेंककर बहरी अंग्रेजी सत्ता को हिला देने वाले अमर शहीद भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त जब मुकदमे का सामना कर रहे थे, तब भगत सिंह ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में आंदोलन कर रही कांग्रेस के डोमीनियन स्टेट (ब्रिटिश ताज के अधीन) के विचार को पूरी तरह नकार दिया और अदालत में अपने बयान में सिंह गर्जना के साथ कहा कि भारत को पूर्ण स्वराज से कम कुछ भी स्वीकार नहीं और हम उसे हर हाल में लेकर रहेंगे। उस दौर के अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू और क्षेत्रीय भाषाओं के अखबारों के साथ ही स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में दर्ज तथ्य इसके गवाह हैं।
भगत सिंह के पूर्ण स्वराज के नारे से उस वक्त का कांग्रेस नेतृत्व अंदर तक हिल गया क्योंकि भगत सिंह, महात्मा गांधी से ज्यादा लोकप्रिय हो चुके थे और अदालत में कहे गए उनके शब्द अखबारों में प्रमुखता से छप रहे थे। उस वक्त का इतिहास गवाह है कि भगत सिंह के वे शब्द बम जैसा काम कर रहे थे और पूरे देश में युवा उनके समर्थन में जुलूस और सभाएं कर रहे थे।
भगत सिंह की तकरीरों के प्रभाव को देख महात्मा गांधी को ये अहसास हो गया कि अगर वे अब भी डोमीनियन स्टेट (ब्रिटिश ताज के अधीन) की मांग के साथ आंदोलन चलाएंगे तो देश उनकी अवज्ञा करने पर उतारू हो सकता है। बस फिर क्या था, 19 दिसम्बर 1929 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज का नारा दिया और लाहौर में हुए कांग्रेस अधिवेशन में 31 दिसम्बर 1929 की अर्द्धरात्रि को ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारों के बीच रावी नदी के तट पर भारतीय स्वतंत्रता का प्रतीक तिरंगा झंडा फहराया गया। इसके बाद 26 जनवरी 1930 को पूरे राष्ट्र में सभाओं का आयोजन कर लोगों ने स्वतंत्रता प्राप्त करने की सामूहिक शपथ ली।