श्री गणेशाय नम:
भारत में लम्बोदर के नाम से प्रसिद्ध भगवान गणेश का स्मरण किए बिना कोई भी नया अथवा शुभ काम नहीं किया जाता है. अब सवाल है कि इसके पीछे क्या कारण है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार जब भगवान शंकर ने अपने ही घर में प्रवेश से रोके जाने पर क्रोध में आकर पुत्र गणेश का सिर कलम कर दिया था, तब भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के आग्रह पर वैद्यनाथ भगवान रुद्र ने हाथी का सिर प्रत्यारोपित कर भगवान गणेश को पुनर्जीवन दिया था. पुनर्जीवन दिए जाने के बाद त्रिदेवों सहित समस्त देवी—देवताओं ने भगवान गणेश को प्रथम पूज्य होने का वरदान दिया और कहा था कि गणेश अब विघ्न विनायक भी कहलाएंगे. इसलिए शुभ कामों में आने वाली बाधाओं से निपटने के लिए भगवान गणेश का आह्वान सबसे पहले किया जाता है.
इसलिए प्रसिद्ध है त्रिनेत्र गणेश जी का ये खास मंदिर
भारतीय समाज में मान्यता है कि विधिवत ढंग से भगवान गणेश को दिया गया पहला निमंत्रण और उनकी पहली पूजा तमाम बाधाओं को दूर रखती है तथा अनेक तरह के लाभ प्रदान करती है. भगवान गणेश के ऐसे ही एक विघ्न विनाशक रूप वाली प्रतिमा विश्व धरोहर के रूप में संरक्षित राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित रणथम्भौर दुर्ग में विराजमान है. ये प्रतिमा चमत्कारी मानी जाती है और इसके तीन नेत्र हैं. इसलिए ये त्रिनेत्र गणेश जी कहलाते हैं.
परिवार के साथ विराजमान हैं विघ्न विनाशक
अरावली पहाडियों पर बने रणथम्भौर दुर्ग में विराजे त्रिनेत्र गणेशजी की प्रतिमा के तीनों नेत्रों का अलग—अलग महातम्य बताया गया है. इनका तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है. इस मंदिर में भगवान गणेश अपने परिवार के साथ विराजमान है. मंदिर में उनकी दोनों पत्नियां और दोनों पुत्र भी साथ में विराजित हैं. किवदंती है कि महाराजा विक्रमादित्य भी प्रत्येक बुधवार को इस मंदिर में त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन करने आते थे.
मोदक चढ़ाने से प्रफुल्लित होते हैं गणपति
भगवान गणेशजी की पहली पूजा किए जाने से मांगलिक और शुभ कामों में समस्त देवी—देवता और भगवान उपस्थित होकर काम की बाधाओं को दूर करते हैं. गणपति के नाम से प्रसिद्ध भगवान लंबोदर मोदक प्रिय हैं और उन्हें मोदक चढ़ाने वालों के काम जरूर सिद्ध होते हैं.