नई दिल्ली. देश पर राज कर रही मोदी सरकार के मंत्री भले ही कितना ही झुठलाएं लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था वाकई रसातल में जा रही है। हालांकि मोदी सरकार के मंत्री कभी वाहनों की खरीद, कभी शेयर बाजार में उछाल, कभी रेस्त्राओं को मिल रहे आर्डरों की आड में सरकार की नाकामियों को छुपाने का प्रयास करते रहे हैं, लेकिन वास्तव में अर्थव्यवस्था की हालत पूरी तरह पतली है।
मंदी का नाम दिया जाना गलत नहीं
जीडीपी पर निगाह रखने वाली राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों का कहना है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 7.5 फ़ीसद की गिरावट दर्ज की गई है और इसे मंदी का नाम दिया जाना कतई गलत नहीं है। जीडीपी के आंकड़े आने से पहले पांच से दस फ़ीसद गिरावट का अनुमान था। पिछली तिमाही में जीडीपी में लगभग 24 फ़ीसद की भारी गिरावट दर्ज की गई थी। चालू तिमाही में उद्योग क्षेत्र में 2.1, खनन क्षेत्र में 9.1 और विनिर्माण के क्षेत्र में 8.6 फ़ीसद की गिरावट दर्ज की गई है। कृषि क्षेत्र और मैन्युफ़ैक्चरिंग के क्षेत्र में मामूली वृद्धि दर्ज की गई है।
जीडीपी पर रिजर्व बैंक के गर्वनर ने 26 नवंबर को एक आयोजन के दौरान कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर आ रही है लेकिन यह देखे जाने की ज़रूरत है कि यह रिकवरी टिकी रहे। भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार केवी सुब्रमण्यम ने जीडीपी में हुई गिरावट को लेकर कहा कि मौजूदा आर्थिक हालात कोविड-19 के असर की वजह से है।
उधर विपक्षी कांग्रेस ने कहा कि भारत मंदी की चपेट में है। क्या मोदी सरकार यह बताएगी कि उसके पास इस मंदी से उबरने की क्या योजना है।
सुस्त हो रही है अर्थव्यवस्था
जीडीपी किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू को कहते हैं। इससे पता चलता है कि सालभर या फिर किसी तिमाही में अर्थव्यवस्था ने कितना अच्छा या ख़राब प्रदर्शन किया है। अगर जीडीपी डेटा सुस्ती दिखाता है तो मतलब है कि अर्थव्यवस्था सुस्त हो रही है और देश ने इससे पिछले साल के मुक़ाबले पर्याप्त सामान का उत्पादन नहीं किया और सेवा क्षेत्र में भी गिरावट रही। भारत में सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफ़िस साल में चार बार जीडीपी का आकलन करता है और हर साल सालाना जीडीपी ग्रोथ आंकड़े जारी करता है।