नई दिल्ली. संयुक्त विपक्षी गठबंधन इंडिया के अविश्वास प्रस्ताव से उपजे नकारात्मक माहौल पर काबू पाने की कोशिश में जुटी केन्द्र की मोदी सरकार की नींद केन्द्रीय कर्मचारियों के संयुक्त मंच ‘एनजेसीए’ ने हराम कर दी है. कर्मचारियों के पुरानी पेंशन योजना बहाली संयुक्त मंच (एनजेसीए) ने 10 अगस्त को दिल्ली में दो लाख से अधिक कर्मचारियों के साथ प्रदर्शन कर मोदी सरकार को चेताया है कि अगर उसने सुप्रीम कोर्ट के पेंशन कर्मचारियों का अधिकार विषयक आदेश को नहीं माना तो वे सरकार की ईंट से ईंट बजा देंगे.
लाखों की संख्या में जुटे प्रदर्शनकारी कर्मचारियों के नेता अशोक कनौजिया ने बताया कि प्रदर्शन में केन्द्र सरकार के लगभग हर विभाग और मंत्रालय के कर्मचारी शामिल थे. प्रदर्शनकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना बहाली की मांग कर रहे थे. कनौजिया के अनुसार मंच के संयोजक शिवगोपाल शर्मा की अगुवाई में एक ज्ञापन भी प्रधानमंत्री को भेजा गया. ज्ञापन में पुरानी पेंशन योजना पर रोक से अब तक के इतिहास का सिलसिलेवार वर्णन करते हुए बताया गया है कि पूर्व में जब पुरानी पेंशन योजना को हटाकर शेयर बाजार आधारित नई पेंशन योजना लाई गई तब सुप्रीम कोर्ट सहित विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों तथा अन्य अधिकारियों ने नई पेंशन योजना लागू करने का विरोध किया था.
सुप्रीम कोर्ट बता चुका है नैसर्गिक अधिकार
आयकर विभाग की कर्मचारी यूनियन के वर्षों तक प्रधान रहे अशोक कनौजिया के अनुसार कोरोना में फ्रंटलाइन योद्धा रहे केन्द्रीय कर्मचारी जान जोखिम में डालकर बचाव कार्यों में सबसे आगे रहते हैं. इसी वजह से ड्यूटी के दौरान हर साल दुर्घटनाओं से में अनेक कर्मचारी मारे जाते हैं. अनेक घायल होकर स्थायी विकलांग हो जाते हैं.
अशोक कनौजिया ने बताया कि प्रधानमंत्री को भेजे गए ज्ञापन में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय की 5 सदस्यीय पीठ ने 17 दिसम्बर 1982 को पेंशन को नैसर्गिक अधिकार माना था. डी.एस. नाकरा और अन्य बनाम भारत संघ मामले में कहा गया था कि पेंशन न तो इनाम है और न ही अन्य कुछ. 309 और कला के खंड (5) के प्रावधान द्वारा प्रदान किया गया। संविधान के अनुच्छेद 148; (ii) के तहत पेंशन अनुग्रह भुगतान नहीं, बल्कि पिछली सेवा का भुगतान है और (iii) यह एक सामाजिक दायित्व है.
पुरानी योजना में न्यूनतम पेंशन थी 9 हजार
जबकि अब राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) लागू करके सरकार ने कर्मचारियों के प्रति अपने दायित्व से मुख मोड़ लिया है. नतीजा रिटायर कर्मचारियों को एनपीएस से रु. 2000/- से रु. 4000/- प्रति माह पेंशन मिल पाती है. जबकि केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन के तहत न्यूनतम पेंशन रु. 9000/- + DR निर्धारित थी।
पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारियों को अंतिम मूल वेतन का 50% दिया जाता था. जबकि नई पेंशन योजना में पेंशन संचित निधि पर निर्भर करती है.
कांग्रेस ने दी भाजपा को क्या दिक्कत
कनौजिया के अनुसार अगर सरकार ने कर्मचारियों के ज्ञापन पर कोई कार्रवाई नहीं की और पुरानी पेंशन योजना बहाली के कदम नहीं उठाए तो कर्मचारी पीछे नहीं हटेंगे. जहां तक आर्थिक तंगी की बात है तो कांग्रेस की राज्य सरकारें तीन राज्यों में इसे लागू कर चुकी हैं. भाजपा की कुछ राज्य सरकारों ने ऐसा आश्वासन दिया है लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार पुरानी योजना बहाली की अपेक्षा कोई नया फार्मूला तैयार करवा रही है जो कर्मचारियों को किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं होगा. इधर राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कर्मचारियों ने ऐन चुनाव के मौके पर इस आंदोलन को तेज किया है. ऐसे में एक तरफ विपक्षी गठबंधन इंडिया के हमले दूसरी ओर कर्मचारियों के संयुक्त मंच का आंदोलन सरकार के समक्ष 2024 का चुनाव जीतने की राह में रोडे बिछा सकता है.