नई दिल्ली. सेना ने असम सरकार से कहा है कि गुवाहाटी स्थित उसके पूर्वी बेस से सटे वन्यजीव अभयारण्य से हाथियों को स्थानान्तरित करे। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो फिर हाथियों की वजह से उसे होने वाले नुकसान का मुआवजा देने की व्यवस्था करे।
सेना के बेस से सटे 78.64 वर्ग किलोमीटर में फैले आमचांग वन्यजीव अभयारण्य में करीब 50 हाथी हैं। वे सेना के इलाके में घुस कर तोड़-फोड़ मचाते हैं। बीते छह महीने में हाथियों के उपद्रव की वजह से 15 लाख का नुकसान हो चुका है। असम में वर्ष 2010 से अब तक लगभग 800 हाथी मारे जा चुके हैं।
वैसे पूर्वोत्तर के घने जंगलों की वजह से सैन्य शिविरों में हाथियों के घुसने और तोड़-फोड़ करने की समस्या बहुत पुरानी है। सेना कंटीली तारों की बाड़ और वॉचटावर जैसे उपाय करती है लेकिन फिर भी जंगली हाथी बाड़ तोड़ कर सेना शिविरों में घुस जाते हैं। हाथियों के घुसने पर सेना के जवान आग और शोरगुल से उनको भगाते हैं।
या तो रोको या फिर भुगतान करो
राज्य की राजधानी गुवाहाटी के पास स्थित सैन्य स्टेशन की करीब छह किलोमीटर लंबी सीमा आमचांग वन्यजीव अभयारण्य से लगी है। कैंटोनमेंट के 52 सब एरिया के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) मेजर जनरल जारकेन गामलिन ने मुख्य सचिव को पत्र भेज कर कहा है कि या तो उक्त अभयारण्य में रहने वाले हाथियों को कहीं और भेजा जाए या फिर सरकार तोड़-फोड़ से हुए नुकसान के मुआवजे के तौर पर 15 लाख का भुगतान करे।
हटा ली थीं लोहे की नुकीली छड़
एक आरटीआई के जवाब में यह बात सामने आई है। सेना का दावा है कि बीते छह महीनों के दौरान उनमें से तीन हाथियों के हमले से भारी नुकसान पहुंचा है। पत्र में कहा गया है कि नारंगी केंद्र पूर्वोत्तर में सेना का लॉजिस्टिक हब है। 2002 में हाथियों के हमलों पर अंकुश लगाने के लिए सेना ने लोहे की बाड़ लगाने की एक योजना शुरू की थी। लेकिन वन विभाग ने यह कहते हुए आपत्ति जताई थी कि लोहे की नुकीली छड़ों से हाथियों को नुकसान पहुंच रहा है। उसके बाद वह बाड़ हटा ली गई थी।
वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि हाथी जैसे विशालकाय जीव को इतनी आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाना संभव नहीं है। इसके लिए बड़े पैमाने पर संसाधनों के अलावा जरूरी तंत्र और मोटी रकम की जरूरत होगी। उनका कहना है कि सेना को इन्हें भोजन देना बंद करके कचरे के समुचित प्रबंधन का इंतजाम करना चाहिए।