सिक्किम के मुख्यमंत्री पीएस तमंग ने रबम लाचेन के अंगोरा खरगोश फार्म का दौरा किया और अंगोरा खरगोश के ऊन से बने उत्पादों का अवलोकन किया. इस मौके पर मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि खास तरह की ऊन के उत्पादन के लिए अंगोरा खरगोश की प्रजाति को संरक्षण देने के हर सम्भव प्रयास किए जाए और अंगोरा खरगोश पालने वाले पशुपालकों को मिलने वाले तमाम तरह के अनुदानों का भुगतान समय पर किया जाए. इसके अलावा याक और भेड़ों की विशिष्ट प्रजातियों की रक्षा पर भी जोर दिया.
पहाड़ी इलाकों में पनपने वाली खरगोश की इस खास प्रजाति के बालों से बने ऊन की विदेशों में भारी मांग है और विदेशी आयातक इसके लिए कोई मूल्य चुकाने को तैयार रहते हैं. इस खरगोश के बालों से बने ऊन माइनस डिग्री तापमान में भी इंसानी शरीर का तापमान मेंटेन रखते हैं और उसे बर्फीले इलाके की बीमारियों से भी दूर रखते हैं.
थर्मल इंसूलेशन क्षमतायुक्त होती है इसकी ऊन
राजस्थान के जोधपुर में स्थित केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड के कार्यकारी निदेशक के अनुसार अंगोरा खरगोश के बालों से बनी ऊन के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अंगोरा ऊन विकास योजना बनाई गई है. मालूम हो कि अंगोरा खरगोश की ऊन सफेद होने से वह थर्मल इंसूलेशन क्षमतायुक्त होती है. इस ऊन से बने वस्त्रों में भेड़ के ऊन से तीन गुना अधिक ताप अवरोधक शक्ति होती है. लगभग पचास साल पहले भारत के हिमालयी इलाकों में अंगोरा खरगोश बड़े पैमाने पर पाए जाते थे लेकिन धीरे-धीरे उन की संख्या में कामी आती चली गई. अभी भारत के उत्तराखंड, हिमांचल प्रदेश, सिक्किम समेत अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में लगभग 50 हजार अंगोरा खरगोश होने का अनुमान है. इनसे सालाना लगभग 30 टन ऊन का उत्पादन होता है.
खाता है दूब, लूसरन, बरसीम और पालका घास
सिक्किम के अलावा हिमाचल के मण्डी और पालमपुर में दो खरगोश प्रजनन फार्म हैं. अंगोरा खरगोश को दूब, लूसरन, बरसीम और पालका घास सबसे अधिक पसंद है. इसके साथ ही वह शलजम, चुकंदर, गाजर, बंदगोभी भी खाता है. लगभग 6 से 8 साल जीने वाला अंगोरा खरगोश की मादा प्रत्येक दूसरे महीने 6 से 8 बच्चे पैदा करती है. इसलिए संरक्षण मिलते ही इसकी आबादी तेजी से बढ़ने लगती है. अंगोरा खरगोश जब वयस्क हो जाता है तो प्रत्येक तीसरे महीने उसके शरीर से ऊन उतारा जाता है. ये साल भर में एक पाव तक ऊन दे देता हे.