सुभाष राज
नई दिल्ली. अग्रवाल भारत की ऐसी जाति है जिसका पूरे देश के उद्योग और व्यापार पर कब्जा है. इसके अलावा सरकार में बड़े-बड़े पदों पर भी इस जाति के लोग बैठे हुए हैं. अग्रवाल जाति का इतिहास कहता है कि उनकी उत्पति उतनी ही पुरानी है जितनी पुरानी भारत की संस्कृति है . अग्रवालों के पूर्वज महाराज अग्रसेन बहुत प्रतापी और प्रजापालक राजा हुए हैं. उन्होंने अपनी राजधानी अग्रोहा में यह नियम लागू कर रखा था कि अगर कोई अग्रवाल परिवार किसी और राज्य से विस्थापित होकर आए तो अग्रोहा का प्रत्येक परिवार उसे एक ईंट और एक रूपया देगा. ईंटों से विस्थापित परिवार का मकान बन जाता था और एक रूपए से एकत्रित राशि से वह व्यापार आरम्भ कर लेता था. परिवार का मकान और व्यापार शुरू करने के लिए खासी रकम एकत्रित हो जाती थी. अग्रवाल भारतवर्ष की वैश्य जाति की एक शाखा का नाम है। इस जाति के लोग व्यवसाय और उद्योग-धंधों की वजह से पूरे देश में फैले हुए हैं. देश के बड़े-बड़े उद्योग अधिकतर इसी जाति के हाथों में है।
सुगंधित लकड़ी ‘अगर ’ से बना अगरवाल
अग्रवाल जाति के नामकरण के सम्बन्ध में प्रचलित है कि इसके पूर्वज ‘अगर’ नामक सुगंधित लकड़ी का व्यापार करते थे। ‘अगर’ का व्यापार करने वाले ही अगरवाल कहलाए. ‘अगर ’ से अगरवाल बना और कालांतर में वह अग्रवाल हो गया. ‘अगरवाल’ का कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी उल्लेख है. बता दें कि प्राचीन भारत में पूजा पद्धति में ‘अगर’ का उपयोग बहुतायत से किया जाता था और इसका व्यापार जिनके हाथ में था, वे वणिक जाति के थे. यह लकड़ी खरीदने के लिए उन्हें पूरे भारत में जाना पड़ता था और उसको बेचने के लिए यह जाति पूरे देश का भ्रमण करती थी। वैश्य जाति के जिस वर्ग का ‘अगर’ व्यापार से सम्बन्ध था, वे ही कालांतर में अग्रवाल कहलाने लगे.
महाराज अग्रसेन का वंशवृक्ष ब्रह्मा से प्रारंभ
अग्रवालों के पूर्वज महाराजा अग्रसेन बहुत प्रसिद्ध और प्रतापी शासक हुए. उनकी राजधानी अगरोहा थी. महाराज अग्रसेन का वंशवृक्ष ब्रह्मा से प्रारंभ है. इतिहास के मुताबिक शहाबुद्दीन गौरी ने अग्रोहा का विनाश कर दिया तो अग्रवाल भारत के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में जाकर बस गए. जो परिवार राजस्थान में आकर बसे, वे मारवाड़ी अग्रवाल कहलाए. उन्होंने व्यापारिक जीवन में प्रवेश करके खूब धन कमाया और पूरे राजस्थान समेत समूचे देश में अस्पताल, धर्मशालाएं बनवाईं और बारहों मास प्याऊ चलाने का नया चलन शुरू किया. जो लोग पंजाब और उत्तरप्रदेश में बसे, उन्होंने राजदरबारों में उच्च स्थान पाया। इनमें राय रामप्रताप और लाला अमीचंद जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं. इसके अलावा अग्रवाल समाज का कलकत्ता, आसाम और मुंबई तक में बोलबाला है.
हरियाणा के हिसार जिले में है अग्रोहा
अग्रवालों के पूर्वज महाराजा अग्रसेन की राजधानी अग्रोहा हरियाणा के हिसार जिले में है. किसी समय ये व्यापार और वाणिज्य का केन्द्र था. अगरोहा प्राचीन नगर है. करीब 22 सौ साल पहले यह बहुत शक्तिशाली था. आज भी अगरोहा गांव से कुछ दूर इस नगर के खण्डहर मौजूद हैं. जिस समय घाघरा नदी बारहमासी हुआ करती थी, उस समय यह व्यापार का प्रमुख केन्द्र था.
गौरी के आक्रमण नामक किताब में दर्ज है इतिहास
इस स्थान की खुदाई में बड़े-बड़े भवनों के अवशेष मिले हैं. शहाबुद्दीन गौरी ने 1194-95 में इस पर कब्जा करके इसे लूट लिया था. गौरी जिस स्थान पर पृथ्वीराज चौहान से युद्ध हुआ, वह अग्रोहा के नजदीक था और युद्ध जीतते ही गौरी की सेना अग्रोहा में घुस गई. पराजित राज्य के नागरिक होने के कारण अग्रोहा के अग्रवाल मुस्लिम अत्याचारों से बचने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में पलायन कर गए. ये काल्पनिक इतिहास नहीं है, बल्कि अग्रोहा की लूट का विवरण गौरी के हमलों की तारीख के साथ संसद की लाइब्रेरी में उपलब्ध मोहम्मद गौरी के आक्रमण नामक किताब में दर्ज हैं.
झेलते थे बाहरी आक्रमण का पहला झटका
कह सकते हैं कि भारत में आए मुस्लिम हमलावरों से हुए युद्ध में अग्रवालों ने राजपूतों से ज्यादा कुर्बानी दी है क्योंकि उन्हें युद्ध के बाद पराजित होने का खामियाजा अपनी धन-सम्पत्ति गंवाकर उठाना पड़ता था. अग्रोहा में मिले सिक्के बताते हैं कि पटियाला नरेश राजा अमरसिंह ने अगरोहा खण्डहरों पर एक किले का निर्माण करवाया था. महाराज अग्रसेन अग्रवाल समाज के आदि पुरूष हैं. अग्रवाल समाज आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को अग्रसेन जयंती हर साल धूमधाम से मनाता है.