भारत में 5जी से पहले अफवाहों का बाजार गर्म
नई दिल्ली. 5जी नेटवर्क के लिए लगाए जा रहे मिलीमीटर वेव-टॉवर से हाई-फ्रीक्वेंसी रेडिएशन निकलता है, लेकिन वह इतना शक्तिशाली नहीं होता कि उससे स्वास्थ्य पर बुरे असर आएं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि वैज्ञानिकों का मानना है कि एक्स-रे या गामा-रे जैसी हाई-फ्रीक्वेंसी तरंगें इंसान और बाकी जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक होती हैं लेकिन 5जी में इस्तेमाल स्पेक्ट्रम इतना कमजोर होता है कि उससे इस तरह के खतरों की सम्भावना दूर—दूर तक नहीं है। 5जी तरंगें मस्तिष्क की कोशिकाओं पर असर डालती हैं, लेकिन यह भी उतना ही सही है कि ये मनुष्य की त्वचा को पार नहीं कर पाती।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में कैंसर रिसर्चर, डेविड रॉबर्ट ग्राइम्स ने द गार्डियन में लिखा है कि मोबाइल फोन स्वास्थ्य आपदा नहीं है। हर तरह का रेडिएशन नुकसानदायक नहीं होता। अगर यह किसी भी तरह से कैंसर की वजह होता तो अब तक इसके मामलों में उल्लेखनीय बढ़त देखने को मिल चुकी होती। अभी तक मोबाइल फोन इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ने के कोई सबूत नहीं मिल पाए हैं।
जानकार मानते हैं कि 5जी से जुड़ी कई अफवाहें अमेरिका और रूस की आपसी खींचतान और रूस की अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने की कोशिशों का नतीजा थी, जिसके चंगुल में कई अन्य देश और वहां के लोग भी आ गए और 5जी को भविष्य की उम्मीद की बजाय खतरे की तरह देखा जाने लगा।
जहां तक भारत का सवाल है तो 2021 की पहली तिमाही में देश में 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी की जाएगी। लेकिन देश भर में फाइबर केबल का नेटवर्क तैयार करने और वेव-टॉवर इंस्टाल करने में लगभग दो से तीन साल का वक्त लग सकता है। भारती एयरटेल का कहना है कि भारत में 5जी तकनीक के लिए इकोसिस्टम अभी तक तैयार नहीं हो पाया है। हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि 2025 तक देश में 20 करोड़ लोगों तक 5जी कनेक्टिविटी पहुंच सकेगी। हालांकि जानकार इसे दूर की कौड़ी मानते हैं। वे कहते हैं कि अभी भारत में बहुत कम टॉवर्स तक फाइबर कनेक्टिविटी पहुंच पाई है और इस आंकड़े तक पहुंचने के लिए कम से कम 60 फीसदी टॉवर्स का फाइबराज्ड होना ज़रूरी है जिसमें अभी कई सालों का वक्त लग सकता है।